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हिंदी में मनोविज्ञान संबंधी उच्चस्तर के ग्रंथों के अभाव को देखते हुए इस विषय से संबंधित अनेक ग्रंथ प्रकाशित किए है। प्रस्तुत ग्रंथ भी इसी प्रभाव की पूर्ति के लिए है। श्री यशदेव शल्य जी ने मन और उससे संबंधित समस्त प्रक्रियामों का विवेचन अत्यन्त सरल ढंग से किया है। यद्यपि पुस्तक का विषय अत्यन्त जटिल है, किन्तु इस पुस्तक में योग्य लेखक ने उसको सरल और रोचक बना दिया है। इसमें सभी पहलुओं से 'मनस्तत्व' का विश्लेषण हो, ऐसी बात नही है, किन्तु मन के मस्तित्व का क्या अर्थ है और हमारी प्रवृत्तियों और प्रक्रि याओं का क्या रूप और थाधार है, इस सम्बन्ध में एक रूपरेखा अवश्य बन सकी है। प्रथम पांच निबन्ध मुख्यतः शरीरविज्ञान और जीवविज्ञान से संबन्ध रखते हैं। इन निबंधों में या तो मनस्त्रक्रिया का विश्लेषण है अथवा हेरेडिटी (Heridity) के अर्थ का शेष निबन्धों में मन की दार्शनिक व्याख्या है।
हिंदी में मनोविज्ञान संबंधी उच्चस्तर के ग्रंथों के अभाव को देखते हुए इस विषय से संबंधित अनेक ग्रंथ प्रकाशित किए है। प्रस्तुत ग्रंथ भी इसी प्रभाव की पूर्ति के लिए है। श्री यशदेव शल्य जी ने मन और उससे संबंधित समस्त प्रक्रियामों का विवेचन अत्यन्त सरल ढंग से किया है। यद्यपि पुस्तक का विषय अत्यन्त जटिल है, किन्तु इस पुस्तक में योग्य लेखक ने उसको सरल और रोचक बना दिया है। इसमें सभी पहलुओं से 'मनस्तत्व' का विश्लेषण हो, ऐसी बात नही है, किन्तु मन के मस्तित्व का क्या अर्थ है और हमारी प्रवृत्तियों और प्रक्रि याओं का क्या रूप और थाधार है, इस सम्बन्ध में एक रूपरेखा अवश्य बन सकी है। प्रथम पांच निबन्ध मुख्यतः शरीरविज्ञान और जीवविज्ञान से संबन्ध रखते हैं। इन निबंधों में या तो मनस्त्रक्रिया का विश्लेषण है अथवा हेरेडिटी (Heridity) के अर्थ का शेष निबन्धों में मन की दार्शनिक व्याख्या है।
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मनस्तत्त्व | Manstattav PDF Download Free by Yashdev Shalya
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